Bhagavad Gita Chapter 15 Verse 15 भगवद् गीता अध्याय 15 श्लोक 15 सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च। वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्।।15.15।। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।15.15।। मैं ही समस्त प्राणियों के हृदय में स्थित हूँ। मुझसे ही स्मृति? ज्ञान और अपोहन (उनका अभाव) होता है। समस्त वेदों के द्वारा मैं ही वेद्य (जानने योग्य) वस्तु हूँ तथा वेदान्त का और वेदों का ज्ञाता भी मैं ही हूँ।। Brahma Vaishnava Sampradaya - Commentary Here the words vedais ca sarvam refers to the conclusions of the Vedic scriptures. The words vedanta-krt refers to Lord Krishnas avatar or incarnation of Vedavyasa the author of the Vedas, Puranas and Vedanta Sutras which all elucidate the absolute, ultimate truth.