Bhagavad Gita Chapter 11 Verse 45 भगवद् गीता अध्याय 11 श्लोक 45 अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे। तदेव मे दर्शय देव रूपं प्रसीद देवेश जगन्निवास।।11.45।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 11.45) ।।11.45।।मैंने ऐसा रूप पहले कभी नहीं देखा। इस रूपको देखकर मैं हर्षित हो रहा हूँ और (साथहीसाथ) भयसे मेरा मन अत्यन्त व्यथित हो रहा है। अतः आप मुझे अपने उसी देवरूपको (सौम्य विष्णुरूपको) दिखाइये। हे देवेश हे जगन्निवास आप प्रसन्न होइये। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।11.45।। मैं आपके इस अदृष्टपूर्व रूप को देखकर हर्षित हो रहा हूँ और मेरा मन भय से अतिव्याकुल भी हो रहा हैं। इसलिए हे देव आप उस पूर्वकाल को ही मुझे दिखाइये। हे देवेश हे जगन्निवास आप प्रसन्न होइये।।