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श्रीमद्‌भागवत कथा - श्री राजेंद्र दास जी || वृंदावन 22-28 अक्टूबर, 2015

LIVE - Shrimad Bhagwat Katha by Shri Rajendra Das Ji - 22th Oct 2015 || Day 1

LIVE - Shrimad Bhagwat Katha by Shri Rajendra Das Ji - 23th Oct 2015 || Day 2

LIVE - Shrimad Bhagwat Katha by Shri Rajendra Das Ji - 24th Oct 2015 || Day 3

LIVE - Shrimad Bhagwat Katha by Shri Rajendra Das Ji - 25th Oct 2015 || Day 4

LIVE - Shrimad Bhagwat Katha by Shri Rajendra Das Ji - 26th Oct 2015 || Day 5

LIVE - Shrimad Bhagwat Katha by Shri Rajendra Das Ji - 27th Oct 2015 || Day 6

LIVE - Shrimad Bhagwat Katha by Shri Rajendra Das Ji - 28th Oct 2015 || Day 7

Contents of this list:

LIVE - Shrimad Bhagwat Katha by Shri Rajendra Das Ji - 22th Oct 2015 || Day 1
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LIVE - Shrimad Bhagwat Katha by Shri Rajendra Das Ji - 24th Oct 2015 || Day 3
LIVE - Shrimad Bhagwat Katha by Shri Rajendra Das Ji - 25th Oct 2015 || Day 4
LIVE - Shrimad Bhagwat Katha by Shri Rajendra Das Ji - 26th Oct 2015 || Day 5
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हम प्रेम नगर के बंजारिन है
जप ताप और साधन क्या जाने
सारी दुनियां है दीवानी, राधा रानी आप
कौन है, जिस पर नहीं है, मेहरबानी आप की
मुझे चढ़ गया राधा रंग रंग, मुझे चढ़ गया
श्री राधा नाम का रंग रंग, श्री राधा नाम
नगरी हो अयोध्या सी,रघुकुल सा घराना हो
चरन हो राघव के,जहा मेरा ठिकाना हो
हम राम जी के, राम जी हमारे हैं
वो तो दशरथ राज दुलारे हैं
कोई कहे गोविंदा, कोई गोपाला।
मैं तो कहुँ सांवरिया बाँसुरिया वाला॥
सब के संकट दूर करेगी, यह बरसाने वाली,
बजाओ राधा नाम की ताली ।
फूलों में सज रहे हैं, श्री वृन्दावन
और संग में सज रही है वृषभानु की
तेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से
मैं बरसाने से आयी हूँ, मैं वृषभानु की
मेरे बांके बिहारी बड़े प्यारे लगते
कही नज़र न लगे इनको हमारी
राधा नाम की लगाई फुलवारी, के पत्ता
के पत्ता पत्ता श्याम बोलता, के पत्ता
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी
कोई पकड़ के मेरा हाथ रे,
मोहे वृन्दावन पहुंच देओ ।
मुझे रास आ गया है,
तेरे दर पे सर झुकाना
मुँह फेर जिधर देखु मुझे तू ही नज़र आये
हम छोड़के दर तेरा अब और किधर जाये
कान्हा की दीवानी बन जाउंगी,
दीवानी बन जाउंगी मस्तानी बन जाउंगी,
वृन्दावन धाम अपार, जपे जा राधे राधे,
राधे सब वेदन को सार, जपे जा राधे राधे।
तू कितनी अच्ची है, तू कितनी भोली है,
ओ माँ, ओ माँ, ओ माँ, ओ माँ ।
दिल की हर धड़कन से तेरा नाम निकलता है
तेरे दर्शन को मोहन तेरा दास तरसता है
बाँस की बाँसुरिया पे घणो इतरावे,
कोई सोना की जो होती, हीरा मोत्यां की जो
गोवर्धन वासी सांवरे, गोवर्धन वासी
तुम बिन रह्यो न जाय, गोवर्धन वासी
सांवरे से मिलने का, सत्संग ही बहाना है,
चलो सत्संग में चलें, हमें हरी गुण गाना
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से
गोविन्द नाम लेकर, फिर प्राण तन से
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे दवार,
यहाँ से जो मैं हारा तो कहा जाऊंगा मैं
जिनको जिनको सेठ बनाया वो क्या
उनसे तो प्यार है हमसे तकरार है ।
तुम रूठे रहो मोहन,
हम तुमको मन लेंगे
कहना कहना आन पड़ी मैं तेरे द्वार ।
मुझे चाकर समझ निहार ॥
ऐसी होली तोहे खिलाऊँ
दूध छटी को याद दिलाऊँ
मुझे रास आ गया है, तेरे दर पे सर झुकाना
तुझे मिल गया पुजारी, मुझे मिल गया
शिव समा रहे मुझमें
और मैं शून्य हो रहा हूँ

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मैं आस लगाए बैठी हूँ गणराज मेरे घर आ
मैं चन्दन तिलक लगाउंगी मोतियन के हार
भक्त सारे नाच रहे छम छम छम,
प्यारा सजा मैया जी का भवन...
मैं बनके मोर रंगीला बरसाने फिरू
अंधेरे में छोड़ सारा धाम जा रहा है,
रोको रे रोको मेरा नाम जा रहा है,
मेरी बरसाने कुटिया बना दे,
तू रीझ मेरी राधे,