Download Bhagwad Gita 9.21 Download BG 9.21 as Image

⮪ BG 9.20 Bhagwad Gita Hindi BG 9.22⮫

Bhagavad Gita Chapter 9 Verse 21

भगवद् गीता अध्याय 9 श्लोक 21

ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं
क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति।
एव त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना
गतागतं कामकामा लभन्ते।।9.21।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 9.21)

।।9.21।।वे उस विशाल स्वर्गलोकके भोगोंको भोगकर पुण्य क्षीण होनेपर मृत्युलोकमें आ जाते हैं। इस प्रकार तीनों वेदोंमें कहे हुए सकाम धर्मका आश्रय लिये हुए भोगोंकी कामना करनेवाले मनुष्य आवागमनको प्राप्त होते हैं।

हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद

।।9.21।। वे उस विशाल स्वर्गलोक को भोगकर? पुण्यक्षीण होने पर? मृत्युलोक को प्राप्त होते हैं। इस प्रकार तीनों वेदों में कहे गये कर्म के शरण हुए और भोगों की कामना वाले पुरुष आवागमन (गतागत) को प्राप्त होते हैं।।

हिंदी टीका - स्वामी रामसुख दास जी

।।9.21।। व्याख्या --  ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं ৷৷. कामकामा लभन्ते -- स्वर्गलोक भी विशाल (विस्तृत) है? वहाँकी आयु भी विशाल (लम्बी) है और वहाँकी भोगसामग्री भी विशाल (बहुत) है। इसलिये इन्द्रलोकको विशाल कहा गया है।स्वर्गकी प्राप्ति चाहनेवाले न तो भगवान्का आश्रय लेते हैं और न भगवत्प्राप्तिके किसी साधनका ही आश्रय लेते हैं। वे तो केवल तीनों वेदोंमें कहे हुए सकाम धर्मों(अनुष्ठानों) का ही आश्रय लेते हैं। इसलिये उनको त्रयीधर्मके शरण बताया गया है।गतागतम् का अर्थ है -- जाना और आना। सकाम अनुष्ठान करनेवाले स्वर्गके प्रापक जिन पुण्योंके फलस्वरूप स्वर्गमें जाते हैं? उन पुण्योंके समाप्त होनेपर वे पुनः मृत्युलोकमें लौट आते हैं। इस प्रकार उनका घटीयन्त्रकी तरह बारबार सकाम शुभकर्म करके स्वर्गमें जाने और फिर लौटकर मृत्युलोकमें आनेका चक्कर चलता ही रहता है। इस चक्करसे वे कभी छूट नहीं पाते।अगर पूर्वश्लोकमें आये पूतपापाः पदसे जिनके सम्पूर्ण पाप नष्ट हो गये हैं और यहाँ आये क्षीणे पुण्ये पदोंसे जिनके सम्पूर्ण पुण्य क्षीण हो गये हैं -- ऐसा अर्थ लिया जाय? तो उनको (पापपुण्य दोनों क्षीण होनेसे) मुक्त हो जाना चाहिये परन्तु वे मुक्त नहीं होते? प्रत्युत आवागमनको प्राप्त होते हैं। इसलिये यहाँ पूतपापाः पदसे वे लिये गये हैं? जिनके स्वर्गके प्रतिबन्धक पाप यज्ञ करनेसे नष्ट हो गये हैं और क्षीणे पुण्ये पदोंसे वे लिये गये हैं? जिनके स्वर्गके प्रापक पुण्य वहाँका सुख भोगनेसे समाप्त हो गये हैं। अतः सम्पूर्ण पापों और पुण्योंके नाशकी बात यहाँ नहीं आयी है। सम्बन्ध --  जो त्रयीधर्मका आश्रय लेते हैं? उनको तो देवताओंसे प्रार्थना -- याचना करनी पड़ती है परन्तु जो केवल मेरा ही आश्रय लेते हैं? उनको अपने योगक्षेमके लिये मनमें चिन्ता? संकल्प अथवा याचना नहीं करनी पड़ती -- यह बात भगवान् आगेके श्लोकमें बताते हैं।

हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी

।।9.21।। जिन्होंने तीनों वेदों के कर्मकाण्ड का अध्ययन किया हो और जो स्वर्गादि फल के प्रापक यज्ञयागादि के विधिविधान भी जानते हों? ऐसे लोग यदि सकाम भावना से श्रद्धापूर्वक उन कर्मों का अनुष्ठान करते हैं? तो वे स्वर्ग लोक को प्राप्त हो कर वहाँ दिव्य देवताओं के भोगांे को भोगते हैं।सोम नामक एक लता होती है? जिसका दूधिया रस यज्ञ कर्म में प्रयोग किया जाता है और यज्ञ की समाप्ति पर अल्प मात्रा में तीर्थपान के समान इसे ग्रहण किया जाता है। इस प्रकार सोमपा शब्द से अभिप्राय यज्ञकर्म की समाप्ति से समझना चाहिए। सकाम भावना से किये गये ये यज्ञकर्म अनित्य फल देने वाले होते हैं। भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि स्वर्ग को प्राप्त जीव पुण्य समाप्त होने पर मृत्युलोक में प्रवेश करते हैं।ऐसे अविवेकी कामी लोगों के प्रति भगवान् की अरुचि उनके इन शब्दों में स्पष्ट होती है कि वेदोक्त कर्म का अनुष्ठान कर? भोगों की कामना करने वाले? बारम्बार (स्वर्ग को) जाते और (संसार को) आते हैं।परन्तु जो पुरुष निष्काम और तत्त्वदर्शी हैं? उनके विषय में भगवान् कहते हैं --