Download Bhagwad Gita 8.23 Download BG 8.23 as Image

⮪ BG 8.22 Bhagwad Gita Hindi BG 8.24⮫

Bhagavad Gita Chapter 8 Verse 23

भगवद् गीता अध्याय 8 श्लोक 23

यत्र काले त्वनावृत्तिमावृत्तिं चैव योगिनः।
प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ।।8.23।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 8.23)

।।8.23।।हे भरतवंशियोंमें श्रेष्ठ अर्जुन जिस काल अर्थात् मार्गमें शरीर छोड़कर गये हुए योगी अनावृत्तिको प्राप्त होते हैं अर्थात् पीछे लौटकर नहीं आते और (जिस मार्गमें गये हुए) आवृत्तिको प्राप्त होते हैं अर्थात् पीछे लौटकर आते हैं उस कालको अर्थात् दोनों मार्गोंको मैं कहूँगा।

हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद

।।8.23।। हे भरतश्रेष्ठ जिस काल में (मार्ग में) शरीर त्याग कर गये हुए योगीजन अपुनरावृत्ति को और (या) पुनरावृत्ति को प्राप्त होते हैं वह काल (मार्ग) मैं तुम्हें बताऊँगा।।

हिंदी टीका - स्वामी रामसुख दास जी

।।8.23।। व्याख्या --   [जीवित अवस्थामें ही बन्धनसे छूटनेको सद्योमुक्ति कहते हैं अर्थात् जिनको यहाँ ही भगवत्प्राप्ति हो गयी भगवान्में अनन्यभक्ति हो गयी अनन्यप्रेम हो गया वे यहाँ ही परम संसिद्धिको प्राप्त हो जाते हैं। दूसरे जो साधक किसी सूक्ष्म वासनाके कारण ब्रह्मलोकमें जाकर क्रमशः ब्रह्माजीके साथ मुक्त हो जाते हैं उनकी मुक्तिको क्रममुक्ति कहते हैं। जो केवल सुख भोगनेके लिये ब्रह्मलोक आदि लोकोंमें जाते हैं वे फिर लौटकर आते हैं। इसको पुनरावृत्ति कहते हैं। सद्योमुक्तिका वर्णन तो पंद्रहवें श्लोकमें हो गया पर क्रममुक्ति और पुनरावृत्तिका वर्णन करना बाकी रह गया। अतः इन दोनोंका वर्णन करनेके लिये भगवान् आगेका प्रकरण आरम्भ करते हैं।]यत्र काले त्वनावृत्तिमावृत्तिं ৷৷. वक्ष्यामि भरतर्षभ -- पीछे छूटे हुए विषयका लक्ष्य करानेके लिये यहाँ तु अव्ययका प्रयोग किया गया है।ऊर्ध्वगतिवालोंको कालाभिमानी देवता जिस मार्गसे ले जाता है उस मार्गका वाचक यहाँ काल शब्द लेना चाहिये क्योंकि आगे छब्बीसवें और सत्ताईसवें श्लोकमें इसी काल शब्दको मार्गके पर्यायवाची गति और सृति शब्दोंसे कहा गया है।अनावृत्तिमावृत्तिम् कहनेका तात्पर्य है कि अनावृत ज्ञानवाले पुरुष ही अनावृत्तिमें जाते हैं और आवृत ज्ञानवाले पुरुष ही आवृत्तिमें जाते हैं। जो सांसारिक पदार्थों और भोगोंसे विमुख होकर परमात्माके सम्मुख हो गये हैं वे अनावृत ज्ञानवाले हैं अर्थात् उनका ज्ञान (विवेक) ढका हुआ नहीं है प्रत्युत जाग्रत् है। इसलिये वे अनावृत्तिके मार्गमें जाते हैं जहाँसे फिर लौटना नहीं पड़ता। निष्कामभाव होनेसे उनके मार्गमें प्रकाश अर्थात् विवेककी मुख्यता रहती है।सांसारिक पदार्थों और भोगोंमें आसक्ति कामना और ममता रखनेवाले जो पुरुष अपने स्वरूपसे तथा परमात्मासे विमुख हो गये हैं वे आवृत ज्ञानवाले हैं अर्थात् उनका ज्ञान (विवेक) ढका हुआ है। इसलिये वे आवृत्तिके मार्गमें जाते हैं जहाँसे फिर लौटकर जन्ममरणके चक्रमें आना पड़ता है। सकामभाव होनेसे उनके मार्गमें अन्धकार अर्थात् अविवेककी मुख्यता रहती है।जिनका परमात्मप्राप्तिका उद्देश्य है पर भीतरमें आंशिक वासना रहनेसे जो अन्तकालमें विचलितमना होकर पुण्यकारी लोकों(भोगभूमियों) को प्राप्त करके फिर वहाँसे लौटकर आते हैं ऐसे योगभ्रष्टोंको भी आवृत्तिवालोंके मार्गके अन्तर्गत लेनेके लिये यहाँ चैव पद आया है।यहाँ योगिनः पद निष्काम और सकाम -- दोनों पुरुषोंके लिये आया है। सम्बन्ध --   अब उन दोनोंमेंसे पहले शुक्लमार्गका अर्थात् लौटकर न आनेवालोंके मार्गका वर्णन करते हैं।

हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी

।।8.23।। अभ्युदय और निःश्रेयस ये वे दो लक्ष्य हैं जिन्हें प्राप्त करने के लिए मनुष्य अपने जीवन में प्रयत्न करते हैं। अभ्युदय का अर्थ है लौकिक सम्पदा और भौतिक उन्नति के माध्यम से अधिकाधिक विषयों के उपभोग के द्वारा सुख प्राप्त करना। यह वास्तव में सुख का आभास मात्र है क्योंकि प्रत्येक उपभोग के गर्भ में दुःख छिपा रहता है। निःश्रेयस का अर्थ है अनात्मबंध से मोक्ष। इसमें मनुष्य आत्मस्वरूप का ज्ञान प्राप्त करता है जो सम्पूर्ण जगत् का अधिष्ठान है। इस स्वरूपानुभूति में संसारी जीव की समाप्ति और परमानन्द की प्राप्ति होती है।ये दोनों लक्ष्य परस्पर विपरीत धर्मों वाले हैं। भोग अनित्य है और मोक्ष नित्य एक में संसार का पुनरावर्तन है तो अन्य में अपुनरावृत्ति। अभ्युदय में जीवभाव बना रहता है जबकि ज्ञान में आत्मभाव दृढ़ बनता है। आत्मानुभवी पुरुष अपने आनन्दस्वरूप का अखण्ड अनुभव करता है।यदि लक्ष्य परस्पर भिन्नभिन्न हैं तो उन दोनों की प्राप्ति के मार्ग भी भिन्नभिन्न होने चाहिए। भगवान् श्रीकृष्ण यहाँ भरतश्रेष्ठ अर्जुन को वचन देते हैं कि वे उन दो आवृत्ति और अनावृत्ति मार्गों का वर्णन करेंगे।यहाँ काल शब्द का द्वयर्थक प्रयोग किया गया है। काल का अर्थ है प्रयाण काल और उसी प्रकार प्रस्तुत सन्दर्भ में उसका दूसरा अर्थ है मार्ग जिससे साधकगण देहत्याग के उपरान्त अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं।प्रथम अपुनरावृत्ति का मार्ग बताते हैं --