Download Bhagwad Gita 8.17 Download BG 8.17 as Image

⮪ BG 8.16 Bhagwad Gita Swami Ramsukhdas Ji BG 8.18⮫

Bhagavad Gita Chapter 8 Verse 17

भगवद् गीता अध्याय 8 श्लोक 17

सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदुः।
रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जनाः।।8.17।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 8.17)

।।8.17।।जो मनुष्य ब्रह्माके सहस्र चतुर्युगीपर्यन्त एक दिनको और सहस्र चतुर्युगीपर्यन्त एक रातको जानते हैं वे मनुष्य ब्रह्माके दिन और रातको जाननेवाले हैं।

हिंदी टीका - स्वामी रामसुख दास जी

।।8.17।। व्याख्या --   सहस्रयुगपर्यन्तम् ৷৷. तेऽहोरात्रविदो जनाः -- सत्य त्रेता द्वापर और कलि -- मृत्युलोकके इन चार युगोंको एक चतुर्युगी कहते हैं। ऐसी एक हजार चतुर्युगी बीतनेपर ब्रह्माजीका एक दिन होता है और एक हजार चतुर्युगी बीतनेपर ब्रह्माजीकी एक रात होती है (टिप्पणी प0 470)। दिनरातकी इसी गणनाके अनुसार सौ वर्षोंकी ब्रह्माजीकी आयु होती है। ब्रह्माजीकी आयुके सौ वर्ष बीतनेपर ब्रह्माजी परमात्मामें लीन हो जाते हैं और उनका ब्रह्मलोक भी प्रकृतिमें लीन हो जाता है तथा प्रकृति परमात्मामें लीन हो जाती है।कितनी ही बड़ी आयु क्यों न हो वह भी कालकी अवधिवाली ही है। ऊँचेसेऊँचे कहे जानेवाले जो भोग हैं वे भी संयोगजन्य होनेसे दुःखोंके ही कारण हैं -- ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते (गीता 5। 22) और कालकी अवधिवाले हैं। केवल भगवान् ही कालातीत हैं। इस प्रकार कालके तत्त्वको जाननेवाले मनुष्य ब्रह्मलोकतकके दिव्य भोगोंको किञ्चिन्मात्र भी महत्त्व नहीं देते। सम्बन्ध --   ब्रह्माजीके दिन और रातको लेकर जो सर्ग और प्रलय होते हैं उसका वर्णन अब आगेके दो श्लोकोंमें करते हैं।