Bhagavad Gita Chapter 7 Verse 7 भगवद् गीता अध्याय 7 श्लोक 7 मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय। मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव।।7.7।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 7.7) ।।7.7।।हे धनञ्जय मेरेसे बढ़कर (इस जगत्का) दूसरा कोई किञ्चिन्मात्र भी कारण नहीं है। जैसे सूतकी मणियाँ सूतके धागेमें पिरोयी हुई होती हैं ऐसे ही सम्पूर्ण जगत् मेरेमें ही ओतप्रोत है। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।7.7।। हे धनंजय मुझसे श्रेष्ठ (परे) अन्य किचिन्मात्र वस्तु नहीं है। यह सम्पूर्ण जगत् सूत्र में मणियों के सदृश मुझमें पिरोया हुआ है।।