Bhagavad Gita Chapter 7 Verse 5 भगवद् गीता अध्याय 7 श्लोक 5 अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्। जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्।।7.5।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 7.5) ।।7.4 7.5।।(टिप्पणी प0 396) पृथ्वी जल तेज वायु आकाश ये पञ्चमहाभूत और मन बुद्धि तथा अहंकार यह आठ प्रकारके भेदोंवाली मेरी अपरा प्रकृति है। हे महाबाहो इस अपरा प्रकृतिसे भिन्न मेरी जीवरूपा परा प्रकृतिको जान जिसके द्वारा यह जगत् धारण किया जाता है। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।7.5।। हे महाबाहो यह अपरा प्रकृति है। इससे भिन्न मेरी जीवरूपी पराप्रकृति को जानो जिससे यह जगत् धारण किया जाता है।।