Bhagavad Gita Chapter 7 Verse 4 भगवद् गीता अध्याय 7 श्लोक 4 भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च। अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।7.4।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 7.4) ।।7.4 7.5।।(टिप्पणी प0 396) पृथ्वी जल तेज वायु आकाश ये पञ्चमहाभूत और मन बुद्धि तथा अहंकार यह आठ प्रकारके भेदोंवाली मेरी अपरा प्रकृति है। हे महाबाहो इस अपरा प्रकृतिसे भिन्न मेरी जीवरूपा परा प्रकृतिको जान जिसके द्वारा यह जगत् धारण किया जाता है। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।7.4।। पृथ्वी जल अग्नि वायु और आकाश तथा मन बुद्धि और अहंकार यह आठ प्रकार से विभक्त हुई मेरी प्रकृति है।।