Bhagavad Gita Chapter 7 Verse 18 भगवद् गीता अध्याय 7 श्लोक 18 उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्। आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम्।।7.18।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 7.18) ।।7.18।।पहले कहे हुए सबकेसब भक्त बड़े उदार (श्रेष्ठ भाववाले) हैं। परन्तु ज्ञानी (प्रेमी) तो मेरा स्वरूप ही है ऐसा मेरा मत है। कारण कि वह युक्तात्मा है और जिससे श्रेष्ठ दूसरी कोई गति नहीं है ऐसे मेरेमें ही दृढ़ आस्थावाला है। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।7.18।। (यद्यपि) ये सब उत्कृष्ट हैं परन्तु ज्ञानी तो मेरा स्वरूप ही है ऐसा मेरा मत है क्योंकि वह स्थिर बुद्धि ज्ञानी अति उत्तम गतिस्वरूप मुझमें अच्छी प्रकार स्थित है।।