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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 4

भगवद् गीता अध्याय 4 श्लोक 4

अर्जुन उवाच
अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः।
कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति।।4.4।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद

।।4.4।। अर्जुन ने कहा आपका जन्म अपर अर्थात् पश्चात का है और विवस्वान् का जन्म (आपके) पूर्व का है इसलिये यह मैं कैसे जानूँ कि (सृष्टि के) आदि में आपने (इस योग को) कहा था

हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी

।।4.4।। इस अध्याय के प्रारम्भिक श्लोक में घटनाओं के काल के विषयों में स्पष्ट विरोधाभास है। श्रीकृष्ण ने कहा कि उन्होंने सृष्टि के प्रारम्भ में इस योग को विवस्वान् को सिखाया। अर्जुन के लिये स्वाभाविक था कि वह श्रीकृष्ण को देवकी के पुत्र और गोकुल के मुरलीधर कृष्ण के रूप में ही जाने। श्रीकृष्ण की निश्चित जन्म तिथि थी और वे अर्जुन के ही समकालीन थे। इस दृष्टि से उनका सूर्य के प्रति उपदेश करना असंभव था क्योंकि सम्पूर्ण ग्रहों की सृष्टि के पूर्व सूर्य का अस्तित्व सिद्ध है।गीतोपदेष्टा भगवान् श्रीकृष्ण को कोई मनुष्य न समझ ले इसलिये व्यासजी भगवान् के ही मुख से घोषणा करवाते हैं कि