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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 8

भगवद् गीता अध्याय 3 श्लोक 8

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः।।3.8।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद

।।3.8।। तुम (अपने) नियत (कर्तव्य) कर्म करो क्योंकि अकर्म से श्रेष्ठ कर्म है। तुम्हारे अकर्म होने से (तुम्हारा) शरीर निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा।।

हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी

।।3.8।। अपने व्यावहारिक जीवन में नियत कर्म से हमको वे सब कर्तव्य कर्म समझने चाहिये जो परिवार कार्यालय समाज एवं राष्ट्र के व्यक्ति होने के नाते हमें करने पड़ते हैं। इस दृष्टि से अकर्म का अर्थ होगा अपने इन कर्तव्यों को कुशलता से न करना। निष्क्रियता से तो शरीर निर्वाह भी असम्भव होता है। इस प्रकार के अकर्म से राष्ट्र समाज और परिवार का नाश होता है साथ ही वह व्यक्ति स्वयं अपनी अकर्मण्यता का शिकार होकर शारीरिक अक्षमता और बौद्धिक ह्रास से कष्ट पाता है।यह धारणा गलत है कि कर्म बन्धन का कारण होते हैं इसलिये उनको नहीं करना चाहिये। क्यों