Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 6 भगवद् गीता अध्याय 3 श्लोक 6 कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्। इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते।।3.6।। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।3.6।। जो मूढ बुद्धि पुरुष कर्मेन्द्रियों का निग्रह कर इन्द्रियों के भोगों का मन से स्मरण (चिन्तन) करता रहता है वह मिथ्याचारी (दम्भी) कहा जाता है।। Brahma Vaishnava Sampradaya - Commentary There is no commentary for this verse.