Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 34 भगवद् गीता अध्याय 3 श्लोक 34 इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ। तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ।।3.34।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 3.34) ।।3.34।।इन्द्रियइन्द्रियके अर्थमें (प्रत्येक इन्द्रियके प्रत्येक विषयमें) मनुष्यके राग और द्वेष व्यवस्थासे (अनुकूलता और प्रतिकूलताको लेकर) स्थित हैं। मनुष्यको उन दोनोंके वशमें नहीं होना चाहिये क्योंकि वे दोनों ही इसके (पारमार्थिक मार्गमे विघ्न डालनेवाले) शत्रु हैं। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।3.34।। इन्द्रियइन्द्रिय (अर्थात् प्रत्येक इन्द्रिय) के विषय के प्रति (मन में) रागद्वेष रहते हैं मनुष्य को चाहिये कि वह उन दोनों के वश में न हो क्योंकि वे इसके (मनुष्य के) शत्रु हैं।।