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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 26

भगवद् गीता अध्याय 3 श्लोक 26

न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम्।
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान् युक्तः समाचरन्।।3.26।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद

।।3.26।। ज्ञानी पुरुष कर्मों में आसक्त अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम उत्पन्न न करे स्वयं (भक्ति से) युक्त होकर कर्मों का सम्यक् आचरण कर उनसे भी वैसा ही कराये।।

हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी

।।3.26।। यह संभव है कि आत्मानुभूति के पश्चात् ज्ञानी पुरुष जब कार्य क्षेत्र में प्रवेश करे तो तत्त्वज्ञान का सर्वोच्च उपदेश देना प्रारम्भ कर दे जिसे समझने की योग्यता लोगों में न हो। उस पीढ़ी के लोग उस विद्वान पुरुष के कथन का विपरीत अर्थ लगाकर यह समझ सकते हैं कि कर्म का संन्यास सत्य की प्राप्ति का सीधा मार्ग है। ऐसे गुरुओं को यहाँ सावधान किया गया है क्यांेकि इससे लोगों का कर्म करने में उत्साह कम हो सकता है।जीवन गतिशील है। कोई भी निष्क्रिय होकर बैठ नहीं सकता। जीवन की निरन्तर अग्रगामी कर्मरूपी गतिशील धारा के प्रवाह के मध्य में यदि कोई मार्गदर्शक गुरु दोनों हाथ उठाकर अपनी पीढ़ी के लोगों को अकस्मात रुकने का आदेश दें तो उस प्रवाह में वे स्वयं ही छिन्नभिन्न होकर रह जायेंगे। अनेक धर्मोपदेशकों ने यह गलती की और उन्हें उसका मूल्य भी चुकाना पड़ा। यहाँ श्रीकृष्ण मार्गदर्शन करते हुये कहते हैं कि ऐसे धर्मोपदेशकों को चाहिये कि वे समय की गति को पहचान कर कार्य करें जीवनी शक्ति का विरोध करके नहीं।समाज के मार्गदर्शन की पद्धति इस श्लोक में बताई गई है जो समस्त नेतृत्व वर्ग के लिये उपयोगी है। वे सामाजिक राजनैतिक अथवा सांस्कृतिक किसी भी क्षेत्र में क्यों न कार्य कर रहे हों। यदि किसी काल में कोई समाज किसी विशेष दिशा में आगे बढ़ रहा हो तो नेता को अपनी पीढ़ी के साथ मिलकर स्वयं के उदाहरण के द्वारा धीरेधीरे लोगों को सही दिशा में ले जाने का प्रयत्न करना चाहिये।यदि कोई व्यक्ति हरिद्वार जाने के लिये कार को तेज गति से परन्तु विपरीत दिशा में चला रहा हो तो उसकी दिशा सुधारने का उपाय यह नहीं कि अचानक उसे रोक दें किन्तु उसकी दिशा मात्र को बदलें। कार के रुक जाने मात्र से वह किसी लक्ष्य तक नहीं पहुँच सकेगा।इसी प्रकार मनुष्य को कर्म करते रहना चाहिये। यदि वह गलत दिशा में भी जा रहा हो तो केवल कर्म से ही वह सही दिशा में आगे बढ़ सकता है। विद्वान् पुरुष अज्ञानी को कर्म की प्रवृत्ति से विचलित न करे बल्कि स्वयं कुशलतापूर्वक कर्म का आचरण करे जिससे सामान्य जन उसका सरलता से अनुसरण कर सकें।किस प्रकार अज्ञानी पुरुष कर्म में आसक्त होता है