Download Bhagwad Gita 3.22 Download BG 3.22 as Image

⮪ BG 3.21 Bhagwad Gita Swami Chinmayananda BG 3.23⮫

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 22

भगवद् गीता अध्याय 3 श्लोक 22

न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि।।3.22।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद

।।3.22।। यद्यपि मुझे त्रैलोक्य में कुछ भी कर्तव्य नहीं हैं तथा किंचित भी प्राप्त होने योग्य (अवाप्तव्यम्) वस्तु अप्राप्त नहीं है तो भी मैं कर्म में ही बर्तता हूँ।।

हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी

।।3.22।। पूर्णस्वरूप में स्थित योगेश्वर श्रीकृष्ण को तीनों लोकों में किसी वस्तु की इच्छा नहीं थी। यदि वे चाहते तो अपने स्वयं के लिये राज्य स्थापित कर उसमें सुख से रह सकते थे. परन्तु केवल कर्तव्य पालन का उत्तरदायित्व समझते हुए पाण्डवों के धर्म और न्याय संगत पक्ष का साथ देने के लिए ही वे युद्धभूमि में आये थे।बाल्यकाल से लेकर महाभारत युद्ध के क्षण तक उनका सम्पूर्ण जीवन अनासक्ति का ज्वलन्त उदाहरण हैं। यद्यपि उन्हें जीवन में प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्य नहीं थी तथापि वे सदैव कर्म में ही रत रहे मानो उनके लिए कर्म करना उत्साह और आनन्द से परिपूर्ण एक क्रीडा हो।इसी सन्दर्भ में भगवान कहते हैं