Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 8 भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 8 न हि प्रपश्यामि ममापनुद्या द्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम्। अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धम् राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम्।।2.8।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 2.8) ।।2.8।।पृथ्वीपर धनधान्यसमृद्ध और निष्कण्टक राज्य तथा स्वर्गमें देवताओंका आधिपत्य मिल जाय तो भी इन्द्रियोंको सुखानेवाला मेरा जो शोक है वह दूर हो जाय ऐसा मैं नहीं देखता हूँ। Shri Vaishnava Sampradaya - Commentary There is no commentary for this verse.