Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 7 भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 7 कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसंमूढचेताः। यच्छ्रेयः स्यान्निश्िचतं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।।2.7।। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।2.7।। करुणा के कलुष से अभिभूत और कर्तव्यपथ पर संभ्रमित हुआ मैं आपसे पूछता हूँ? कि मेरे लिये जो श्रेयष्कर हो? उसे आप निश्चय करके कहिये? क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ शरण में आये मुझको आप उपदेश दीजिये।। Brahma Vaishnava Sampradaya - Commentary There is no commentary for this verse.