Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 68 भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 68 तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः। इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।2.68।। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।2.68।। इसलिये? हे महाबाहो जिस पुरुष की इन्द्रियाँ सब प्रकार इन्द्रियों के विषयों के वश में की हुई होती हैं? उसकी बुद्धि स्थिर होती है।। हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी ।।2.68।। किसी सिद्धांत को समझाते समय पर्याप्त तर्क प्रस्तुत किये बिना हम अन्तिम निष्कर्ष को प्रकट नहीं करते चाहे वह निष्कर्ष कितना ही स्वीकार करने योग्य क्यों न हो। इसी को ध्यान में रखते हुए श्रीकृष्ण अर्जुन को आवश्यक तर्क देने के बाद इस श्लोक में इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि केवल अश्रु विलाप और शोक के अतिरिक्त किसी उच्चतर वस्तु की अपेक्षा यदि हम जीवन में करते हैं तो संयमपूर्ण जीवन ही जीने योग्य है। इन्द्रियों के विषयों से जिसकी इन्द्रियाँ पूर्णत वश में होती हैं वही पुरुष वास्तव में स्थितप्रज्ञ है।इन्द्रियों को वश में रखने का अर्थ यह नहीं समझना चाहिए कि ज्ञानी पुरुष की इन्द्रियाँ निरुपयोगी हो जाती हैं जिससे वह किसी प्रकार विषय ग्रहण ही न कर सके इन्द्रियों की दुर्बलता ज्ञान का लक्षण नहीं। इसका अर्थ केवल यह है कि विषयों के ग्रहण करने से उसके मन की शान्ति में कोई विघ्न नहीं आ सकता उसे कोई विचलित नहीं कर सकता। अज्ञानी पुरुष इन्द्रियों का दास होता है जबकि स्थितप्रज्ञ पुरुष उनका स्वामी।ज्ञानी के लक्षण को स्पष्ट करते हुए भगवान् आगे कहते हैं