Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 58 भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 58 यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः। इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।2.58।। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।2.58।। कछुवा अपने अंगों को जैसे समेट लेता है वैसे ही यह पुरुष जब सब ओर से अपनी इन्द्रियों को इन्द्रियों के विषयों से परावृत्त कर लेता है? तब उसकी बुद्धि स्थिर होती है।। Brahma Vaishnava Sampradaya - Commentary There is no commentary for this verse.