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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 49

भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 49

दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय।
बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः।।2.49।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 2.49)

।।2.49।।बुद्धियोग(समता) की अपेक्षा सकामकर्म दूरसे (अत्यन्त) ही निकृष्ट है। अतः हे धनञ्जय तू बुद्धि (समता) का आश्रय ले क्योंकि फलके हेतु बननेवाले अत्यन्त दीन हैं।

हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद

।।2.49।। इस बुद्धियोग की तुलना में(सकाम) कर्म अत्यन्त निकृष्ट हैं? इसलिये हे धनंजय तुम बद्धि की शरण लो फल की इच्छा करनेवाले कृपण (दीन) हैं।।