Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 42 भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 42 यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्िचतः। वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः।।2.42।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 2.42) ।।2.42 2.43।।हे पृथानन्दन जो कामनाओंमें तन्मय हो रहे हैं स्वर्गको ही श्रेष्ठ माननेवाले हैं वेदोंमें कहे हुए सकाम कर्मोंमें प्रीति रखनेवाले हैं भोगोंके सिवाय और कुछ है ही नहीं ऐसा कहनेवाले हैं वे अविवेकी मनुष्य इस प्रकारकी जिस पुष्पित (दिखाऊ शोभायुक्त) वाणीको कहा करते हैं जो कि जन्मरूपी कर्मफलको देनेवाली है तथा भोग और ऐश्वर्यकी प्राप्तिके लिये बहुतसी क्रियाओंका वर्णन करनेवाली है। Shri Vaishnava Sampradaya - Commentary There is no commentary for this verse.