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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 35

भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 35

भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः।
येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम्।।2.35।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 2.35)

।।2.35।।महारथीलोग तुझे भयके कारण युद्धसे उपरत हुआ मानेंगे। जिनकी धारणामें तू बहुमान्य हो चुका है उनकी दृष्टिमें तू लघुताको प्राप्त हो जायगा।

हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद

।।2.35।। और जिनके लिए तुम बहुत माननीय हो उनके लिए अब तुम तुच्छता को प्राप्त होओगे? वे महारथी लोग तुम्हें भय के कारण युद्ध से निवृत्त हुआ मानेंगे।।

हिंदी टीका - स्वामी रामसुख दास जी

 2.35।। व्याख्या भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः   तू ऐसा समझता है कि मैं तो केवल अपना कल्याण करनेके लिये युद्धसे उपरत हुआ हूँ परन्तु अगर ऐसी ही बात होती और युद्धको तू पाप समझता तो पहले ही एकान्तमें रहकर भजनस्मरण करता और तेरी युद्धके लिये प्रवृत्ति भी नहीं होती। परन्तु तू एकान्तमें न रहकर युद्धमें प्रवृत्त हुआ है। अब अगर तू युद्धसे निवृत्त होगा तो बड़ेबड़े महारथीलोग ऐसा ही मानेंगे कि युद्धमें मारे जानेके भयसे ही अर्जुन युद्धसे निवृत्त हुआ है। अगर वह धर्मका विचार करता तो युद्धसे निवृत्त नहीं होता क्योंकि युद्ध करना क्षत्रियका धर्म है। अतः वह मरनेके भयसे ही युद्धसे निवृत्त हो रहा है। येषाँ च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम्   भीष्म द्रोणाचार्य कृपाचार्य शल्य आदि जो बड़ेबड़े महारथी है उनकी दृष्टिमें तू बहुमान्य हो चुका है अर्थात् उनके मनमें यह एक विश्वास है कि युद्ध करनेमें नामी शूरवीर तो अर्जुन ही है। वह युद्धमें अनेक दैत्यों देवताओं गन्धर्वों आदिको हरा चुका है। अगर अब तू युद्धसे निवृत्त हो जायगा तो उन महारथियोंके सामने तू लधुता(तुच्छता) को प्राप्त हो जायगा अर्थात् उनकी दृष्टिमें तू गिर जायगा।

हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी

।।2.35।। भावी इतिहास में तो तुम्हारी अपकीर्ति बनी रहेगी ही परन्तु वर्तमान में भी शत्रु पक्ष के ये महारथी तुम्हारा उपहास करेंगे। इस भ्रातृहन्ता युद्ध से तुम्हें जो दुख है उसे न समझकर वे तो यही मानेंगे कि तुमने भय और कायरता के कारण युद्ध से पलायन किया है। इस प्रकार का अनादरपूर्ण कायरता का आरोप कोई भी वीर पुरुष सहन नहीं कर सकता विशेषरूप से जब अपने ही तुल्य बल के शत्रुओं द्वारा वह किया गया हो। और