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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 34

भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 34

अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम्।
संभावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते।।2.34।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 2.34)

।।2.34।।सब प्राणी भी तेरी सदा रहनेवाली अपकीर्तिका कथन करेंगे। वह अपकीर्ति सम्मानित मनुष्यके लिये मृत्युसे भी बढ़कर दुःखदायी होती है।

हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद

।।2.34।। और सब लोग तुम्हारी बहुत काल तक रहने वाली अपकीर्ति को भी कहते रहेंगे और सम्मानित पुरुष के लिए अपकीर्ति मरण से भी अधिक होती है।।

हिंदी टीका - स्वामी रामसुख दास जी

 2.34।। व्याख्या अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम्   मनुष्य देवता यक्ष राक्षस आदि जिन प्राणियोंका तेरे साथ कोई सम्बन्ध नहीं है अर्थात् जिनकी तेरे साथ न मित्रता है और न शत्रुता ऐसे साधारण प्राणी भी तेरी अपकीर्ति अपयशका कथन करेंगे कि देखो अर्जुन कैसा भीरू था जो कि अपने क्षात्रधर्मसे विमुख हो गया। वह कितना शूरवीर था पर युद्धके मौकेपर उसकी कायरता प्रकट हो गयी जिसका कि दूसरोंको पता ही नहीं था आदिआदि। ते  कहनेका भाव है कि स्वर्ग मृत्यु और पाताललोकमें भी जिसकी धाक जमी हुई है ऐसे तेरी अपकीर्ति होगी।  अव्ययाम्  कहनेका तात्पर्य है कि जो आदमी श्रेष्ठताको लेकर जितना अधिक प्रसिद्ध होता है उसकी कीर्ति और अपकीर्ति भी उतनी ही अधिक स्थायी रहनेवाली होती है। सम्भावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते   इस श्लोकके पूर्वार्धमें भगवान्ने साधारण प्राणियोंद्वारा अर्जुनकी निन्दा किये जानेकी बात बतायी। अब श्लोकके उत्तार्धमें सबके लिये लागू होनेवाली सामान्य बात बताते हैं।संसारकी दृष्टिमें जो श्रेष्ठ माना जाता है जिसको लोग बड़ी ऊँची दृष्टिसे देखते हैं ऐसे मनुष्यकी जब अपकीर्ति होती है तब वह अपकीर्ति उसके लिये मरणसे भी अधिक भयंकर दुःखदायी होती है। कारण कि मरनेमें तो आयु समाप्त हुई है उसने कोई अपराध तो किया नहीं है परन्तु अपकीर्ति होनेमें तो वह खुद धर्ममर्यादासे कर्तव्यसे च्युत हुआ है। तात्पर्य है कि लोगोंमें श्रेष्ठ माना जानेवाला मनुष्य अगर अपने कर्तव्यसे च्युत होता है तो उसका बड़ा भयंकर अपयश होता है।

हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी

।।2.34।। एक प्रसिद्ध सम्मानित वीर के लिए अपकीर्ति मरण से भी अधिक होती है। श्रीकृष्ण अर्जुन को दुविधा त्याग कर युद्ध में प्रवृत्त करने के लिए एक और तर्क प्रस्तुत करते हैं। अर्जुन का पक्ष धर्म और न्याय का होने पर भी उसका युद्ध से पलायन कायरता का लक्षण है। भगवान् के शब्दों में अर्जुन के प्रति सहानुभूति अन्तर्निहित है क्योंकि वे जानते हैं कि भावावेग में शूरवीर अर्जुन भी मन से दुर्बल होकर हतोत्साहित हो सकता है। आगे