Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 31 भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 31 स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि। धर्म्याद्धि युद्धाछ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते।।2.31।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 2.31) ।।2.31।।अपने धर्मको देखकर भी तुम्हें विकम्पित अर्थात् कर्तव्यकर्मसे विचलित नहीं होना चाहिये क्योंकि धर्ममय युद्धसे बढ़कर क्षत्रियके लिये दूसरा कोई कल्याणकारक कर्म नहीं है। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।2.31।। और स्वधर्म को भी देखकर तुमको विचलित होना उचित नहीं है? क्योंकि धर्मयुक्त युद्ध से बढ़कर दूसरा कोई कल्याणकारक कर्त्तव्य क्षत्रिय के लिये नहीं है।।