Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 2 भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 2 श्री भगवानुवाच कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्। अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।।2.2।। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।2.2।। श्री भगवान् ने कहा -- हे अर्जुन तुमको इस विषम स्थल में यह मोह कहाँ से उत्पन्न हुआ यह आर्य आचरण के विपरीत न तो स्वर्ग प्राप्ति का साधन ही है और न कीर्ति कराने वाला ही है।। Brahma Vaishnava Sampradaya - Commentary There is no commentary for this verse.