Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 14 भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 14 मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः। आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।।2.14।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 2.14) ।।2.14।।हे कुन्तीनन्दन इन्द्रियोंके जो विषय (जड पदार्थ) हैं वे तो शीत (अनुकूलता) और उष्ण (प्रतिकूलता) के द्वारा सुख और दुःख देनेवाले हैं। वे आनेजानेवाले और अनित्य हैं। हे भरतवंशोद्भव अर्जुन उनको तुम सहन करो। Shri Vaishnava Sampradaya - Commentary There is no commentary for this verse.