Bhagavad Gita Chapter 18 Verse 52 भगवद् गीता अध्याय 18 श्लोक 52 विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानसः। ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः।।18.52।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 18.52) ।।18.52।।जो विशुद्ध (सात्त्विकी) बुद्धिसे युक्त? वैराग्यके आश्रित? एकान्तका सेवन करनेवाला और नियमित भोजन करनेवाला साधक धैर्यपूर्वक इन्द्रियोंका नियमन करके? शरीरवाणीमनको वशमें करके? शब्दादि विषयोंका त्याग करके और रागद्वेषको छोड़कर निरन्तर ध्यानयोगके परायण हो जाता है? वह अहंकार? बल? दर्प? काम? क्रोध और परिग्रहका त्याग करके एवं निर्मम तथा शान्त होकर ब्रह्मप्राप्तिका पात्र हो जाता है। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।18.52।। विविक्त सेवी? लघ्वाशी (मिताहारी) जिसने अपने शरीर? वाणी और मन को संयत किया है? ध्यानयोग के अभ्यास में सदैव तत्पर तथा वैराग्य पर समाश्रित।।