Bhagavad Gita Chapter 18 Verse 51 भगवद् गीता अध्याय 18 श्लोक 51 बुद्ध्या विशुद्धया युक्तो धृत्याऽऽत्मानं नियम्य च। शब्दादीन् विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ व्युदस्य च।।18.51।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 18.51) ।।18.51।।जो विशुद्ध (सात्त्विकी) बुद्धिसे युक्त? वैराग्यके आश्रित? एकान्तका सेवन करनेवाला और नियमित भोजन करनेवाला साधक धैर्यपूर्वक इन्द्रियोंका नियमन करके? शरीरवाणीमनको वशमें करके? शब्दादि विषयोंका त्याग करके और रागद्वेषको छोड़कर निरन्तर ध्यानयोगके परायण हो जाता है? वह अहंकार? बल? दर्प? काम? क्रोध और परिग्रहका त्याग करके एवं निर्मम तथा शान्त होकर ब्रह्मप्राप्तिका पात्र हो जाता है। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।18.51।। विशुद्ध बुद्धि से युक्त? धृति से आत्मसंयम कर? शब्दादि विषयों को त्याग कर और रागद्वेष का परित्याग कर৷৷৷৷।।