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Bhagavad Gita Chapter 18 Verse 37

भगवद् गीता अध्याय 18 श्लोक 37

यत्तदग्रे विषमिव परिणामेऽमृतोपमम्।
तत्सुखं सात्त्विकं प्रोक्तमात्मबुद्धिप्रसादजम्।।18.37।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद

।।18.37।। जो सुख प्रथम (प्रारम्भ में) विष के समान (भासता) है? परन्तु परिणाम में अमृत के समान है? वह आत्मबुद्धि के प्रसाद से उत्पन्न सुख सात्त्विक कहा गया है।।

Brahma Vaishnava Sampradaya - Commentary

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