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Bhagavad Gita Chapter 18 Verse 25

भगवद् गीता अध्याय 18 श्लोक 25

अनुबन्धं क्षयं हिंसामनपेक्ष्य च पौरुषम्।
मोहादारभ्यते कर्म यत्तत्तामसमुच्यते।।18.25।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 18.25)

।।18.25।।जो कर्म परिणाम? हानि? हिंसा और सामर्थ्यको न देखकर मोहपूर्वक आरम्भ किया जाता है? वह तामस कहा जाता है।

हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद

।।18.25।। जो कर्म परिणाम? हानि? हिंसा और सार्मथ्य (पौरुषम्) का विचार न करके केवल मोहवश आरम्भ किया जाता है? वह कर्म तामस कहलाता है।।