Bhagavad Gita Chapter 17 Verse 3 भगवद् गीता अध्याय 17 श्लोक 3 सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत। श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्धः स एव सः।।17.3।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 17.3) ।।17.3।।हे भारत सभी मनुष्योंकी श्रद्धा अन्तःकरणके अनुरूप होती है। यह मनुष्य श्रद्धामय है। इसलिये जो जैसी श्रद्धावाला है? वही उसका स्वरूप है अर्थात् वही उसकी निष्ठा -- स्थिति है। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।17.3।। हे भारत सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके सत्त्व (स्वभाव? संस्कार) के अनुरूप होती है। यह पुरुष श्रद्धामय है? इसलिए जो पुरुष जिस श्रद्धा वाला है वह स्वयं भी वही है अर्थात् जैसी जिसकी श्रद्धा वैसा ही उसका स्वरूप होता है।।