Bhagavad Gita Chapter 17 Verse 20 भगवद् गीता अध्याय 17 श्लोक 20 दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे। देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्।।17.20।। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।17.20।। दान देना ही कर्तव्य है इस भाव से जो दान योग्य देश? काल को देखकर ऐसे (योग्य) पात्र (व्यक्ति) को दिया जाता है? जिससे प्रत्युपकार की अपेक्षा नहीं होती है? वह दान सात्त्विक माना गया है।। हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी ।।17.20।। दान को कर्तव्य समझकर दिये जाने पर वह सात्त्विक दान कहलाता है। दान का ग्रहणकर्ता ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो प्रत्युपकार करने में असमर्थ हो। इसी प्रकार दान देते समय देश? काल और पात्र की योग्यता का भी विचार करना चाहिए। जिस देश काल में जिस वस्तु का अभाव हो? वही देशकाल उस वस्तु के द्वारा प्राणियों की सेवा करने के लिए योग्य समझा जाता है जैसे अकालग्रस्त प्रान्त में अन्नदान। योग्य पात्र से तात्पर्य अनाथ? दुखी? असमर्थ तथा श्रेष्ठ आचरणों वाले विद्वान जनों से है।कुछ विद्वानों का यह मत है कि दान देने में देश कालादि का विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं है। जिस प्रकार एक वृक्ष अपने फलों को सभी वर्गों के लोगों को देता है? उसी प्रकार मनुष्य को अपने पास उपलब्ध वस्तुओं का दान करना चाहिए।अनेक लोगों को उपर्युक्त मत में विश्वास रखकर तदनुसार दान करने में कठिनाई अनुभव होगी। अत गीता का यह कथन उचित ही है कि मनुष्य को इस बात का विचार करना चाहिए कि उसका दान समाज के योग्य पुरुषों को प्राप्त हो रहा है अथवा नहीं।