Bhagavad Gita Chapter 17 Verse 2 भगवद् गीता अध्याय 17 श्लोक 2 श्री भगवानुवाच त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा। सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां श्रृणु।।17.2।। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।17.2।। श्री भगवान् ने कहा -- देहधारियों (मनुष्यों) की वह स्वाभाविक (ज्ञानरहित) श्रद्धा तीन प्रकार की सात्त्विक? राजसिक और तामसिक होती हैं? उसे तुम मुझसे सुनो।। Brahma Vaishnava Sampradaya - Commentary