Bhagavad Gita Chapter 17 Verse 15 भगवद् गीता अध्याय 17 श्लोक 15 अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत्। स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते।।17.15।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 17.15) ।।17.15।।उद्वेग न करनेवाला? सत्य? प्रिय? हितकारक भाषण तथा स्वाध्याय और अभ्यास करना -- यह वाणीसम्बन्धी तप कहा जाता है। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।17.15।। जो वाक्य (भाषण) उद्वेग उत्पन्न करने वाला नहीं है? जो प्रिय? हितकारक और सत्य है तथा वेदों का स्वाध्याय अभ्यास वाङ्मय (वाणी का) तप कहलाता है।।