Bhagavad Gita Chapter 17 Verse 11 भगवद् गीता अध्याय 17 श्लोक 11 अफलाकाङ्क्षिभिर्यज्ञो विधिदृष्टो य इज्यते। यष्टव्यमेवेति मनः समाधाय स सात्त्विकः।।17.11।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 17.11) ।।17.11।।यज्ञ करना कर्तव्य है -- इस तरह मनको समाधान करके फलेच्छारहित मनुष्योंद्वारा जो शास्त्रविधिसे नियत यज्ञ किया जाता है? वह सात्त्विक है। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।17.11।। जो यज्ञ शास्त्रविधि से नियन्त्रित किया हुआ तथा जिसे यह मेरा कर्तव्य है ऐसा मन का समाधान (निश्चय) कर फल की आकांक्षा नहीं रखने वाले लोगों के द्वारा किया जाता है? वह यज्ञ सात्त्विक है।।