Bhagavad Gita Chapter 16 Verse 17 भगवद् गीता अध्याय 16 श्लोक 17 आत्मसम्भाविताः स्तब्धा धनमानमदान्विताः। यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम्।।16.17।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 16.17) ।।16.17।।अपनेको सबसे अधिक पूज्य माननेवाले? अकड़ रखनेवाले तथा धन और मानके मदमें चूर रहनेवाले वे मनुष्य दम्भसे अविधिपूर्वक नाममात्रके यज्ञोंसे यजन करते हैं। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।16.17।। अपने आप को ही श्रेष्ठ मानने वाले? स्तब्ध (गर्वयुक्त)? धन और मान के मद से युक्त लोग शास्त्रविधि से रहित केवल नाममात्र के यज्ञों द्वारा दम्भपूर्वक यजन करते हैं।।