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Bhagavad Gita Chapter 16 Verse 15

भगवद् गीता अध्याय 16 श्लोक 15

आढ्योऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया।
यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिताः।।16.15।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 16.15)

।।16.15।।हम धनवान् हैं? बहुतसे मनुष्य हमारे पास हैं? हमारे समान और कौन है हम खूब यज्ञ करेंगे? दान देंगे और मौज करेंगे -- इस तरह वे अज्ञानसे मोहित रहते हैं।

हिंदी टीका - स्वामी रामसुख दास जी

।।16.15।। व्याख्या --   आसुर स्वभाववाले व्यक्ति अभिमानके परायण होकर इस प्रकारके मनोरथ करते हैं, -- आढ्योऽभिजनवानस्मि -- कितना धन हमारे पास है कितना सोनाचाँदी? मकान? खेत? जमीन हमारे पास है कितने अच्छे आदमी? ऊँचे पदाधिकारी हमारे पक्षमें हैं हम धन और जनके बलपर? रिश्वत और सिफारिशके बलपर जो चाहें? वही कर सकते हैं।कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया -- आप इतने घूमेफिरे हो? आपको कई आदमी मिले होंगे पर आप बताओ? हमारे समान आपने कोई देखा है क्या यक्ष्ये दास्यामि -- हम ऐसा यज्ञ करेंगे? ऐसा दान करेंगे कि सबपर टाँग फेर देंगे थोड़ासा यज्ञ करनेसे? थोड़ासा दान देनेसे? थोड़ेसे ब्राह्मणोंको भोजन कराने आदिसे क्या होता है हम तो ऐसे यज्ञ? दान आदि करेंगे? जैसे आजतक किसीने न किये हों। क्योंकि मामूली यज्ञ? दान करनेसे लोगोंको क्या पता लगेगा कि इन्होंने यज्ञ किया? दान दिया। बड़े यज्ञ? दानसे हमारा नाम अखबारोंमें निकलेगा। किसी धर्मशालामें मकान बनवायेंगे? तो उसमें हमारा नाम खुदवाया जायेगा? जिससे हमारी यादगारी रहेगी। मोदिष्ये -- हम कितने बड़े आदमी हैं हमें सब तरहसे सब सामग्री सुलभ है अतः हम आनन्दसे मौज करेंगे।इस प्रकार अभिमानको लेकर मनोरथ करनेवाले आसुर लोग केवल करेंगे? करेंगे -- ऐसा मनोरथ ही करते रहते हैं? वास्तवमें करतेकराते कुछ नहीं। वे करेंगे भी? तो वह भी नाममात्रके लिये करेंगे (जिसा उल्लेख आगे सत्रहवें श्लोकमें आया है)। कारण कि इत्यज्ञानविमोहिताः -- इस प्रकार तेरहवें? चौदहवें और पन्द्रहवें श्लोकमें वर्णित मनोरथ करनेवाले आसुर लोग अज्ञानसे मोहित रहते हैं अर्थात् मूढ़ताके कारण ही उनकी ऐसे मनोरथवाली वृत्ति होती है। सम्बन्ध --   परमात्मासे विमुख हुए आसुरी सम्पदावालोंको जीतेजी अशान्ति? जलन? संताप आदि तो होते ही हैं? पर मरनेपर उनकी क्या गति होती है -- इसको आगेके श्लोकमें बताते हैं।