Bhagavad Gita Chapter 15 Verse 2 भगवद् गीता अध्याय 15 श्लोक 2 अधश्चोर्ध्वं प्रसृतास्तस्य शाखा गुणप्रवृद्धा विषयप्रवालाः। अधश्च मूलान्यनुसन्ततानि कर्मानुबन्धीनि मनुष्यलोके।।15.2।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 15.2) ।।15.2।।उस संसारवृक्षकी गुणों(सत्त्व? रज और तम) के द्वारा बढ़ी हुई तथा विषयरूप कोंपलोंवाली शाखाएँ नीचे? मध्यमें और ऊपर सब जगह फैली हुई हैं। मनुष्यलोकमें कर्मोंके अनुसार बाँधनेवाले मूल भी नीचे और ऊपर (सभी लोकोंमें) व्याप्त हो रहे हैं। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।15.2।। उस वृक्ष की शाखाएं गुणों से प्रवृद्ध हुईं नीचे और ऊपर फैली हुईं हैं (पंच) विषय इसके अंकुर हैं मनुष्य लोक में कर्मों का अनुसरण करने वाली इसकी अन्य जड़ें नीचे फैली हुईं हैं।।