Bhagavad Gita Chapter 14 Verse 14 भगवद् गीता अध्याय 14 श्लोक 14 यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत्। तदोत्तमविदां लोकानमलान्प्रतिपद्यते।।14.14।। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।14.14।। जब यह जीव (देहभृत्) सत्त्वगुण की प्रवृद्धि में मृत्यु को प्राप्त होता है? तब उत्तम कर्म करने वालों के निर्मल अर्थात् स्वर्गादि लोकों को प्राप्त होता है।। हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी ।।14.14।। मरणोपरान्त जीव के अस्तित्व तथा उसकी गति का विषय इन्द्रिय अगोचर है। अत प्रस्तुत प्रकरण में प्रतिपादित सिद्धांत के सत्यत्त्व की पुष्टि इसी देह में रहते हुए इन्द्रियों के द्वारा नहीं हो सकती है किन्तु मनुष्य के वर्तमान जीवन के मानसिक व्यवहार का सूक्ष्म अध्ययन करने पर प्रस्तुत सिद्धांत की युक्तियुक्तता के विषय में कोई सन्देह नहीं रह जाता है। कोई चिकित्सक अकस्मात् किसी दिन स्थापत्यशास्त्र (गृह निर्माण के विज्ञान) की किसी सूक्ष्म समस्या के विषय में चिन्तन नहीं प्रारम्भ करता और न ही कोई अभियन्ता रातों रात कर्करोग (कैंसर) के उपचार की प्रेरणा पाता है। किसी भी समय दोनों ही व्यक्ति अपनी शिक्षा दीक्षा के अनुरूप विषय का ही चिन्तन करते हैं।इस प्रकार? वर्तमान देह में ही हम वैचारिक जीवन का सातत्य अनुभव करते हैं। यह सातत्य? वर्षों? महीनों? सप्ताहों? दिनों और प्रत्येक क्षण के विचारों में भी देखने को मिलता है। प्रत्येक क्षण का विचार पूर्व क्षण के विचार का विस्तार मात्र है। इस प्रकार? यदि हमें वैचारिकजीवन में एक निरन्तरता और नियमबद्धता का स्पष्ट अनुभव होता है? जिसकी अखण्डता भूत? वर्तमान और भविष्य में बनी रहती है? तब मृत्यु के समय अकस्मात् इस शृंखला के टूटने का कोई कारण सिद्ध नहीं होता है। मृत्यु एक अनुभव विशेष मात्र है? जो उत्तरकाल के अनुभवों को प्रभावित कर सकता है। परन्तु यह कोई नवीन विशेष बात नहीं है? क्योंकि प्रत्येक अनुभव ही अपने पश्चात् के अनुभव को अपने गुणदोष से प्रभावित करता रहता है। अत जीवन पर्यन्त के विचारों के संयुक्त परिणाम से ही देहत्याग के पश्चात् जीव की गति निर्धारित होती है। यद्यपि इस भौतिक जगत् से उसका सम्बन्ध समाप्त हो जाता है? तथापि उसका वैचारिक जीवन बना रहता है।भगवान् कहते हैं कि सत्वगुण प्रवृद्ध हो और उस समय जीव देहत्याग करे? तो वह उत्तमवित् लोगों के निर्मल लोकों को प्राप्त होता है। ये स्वर्ग से लेकर ब्रह्मलोक तक के लोक हैं। ब्रह्मलोक में रज और तम का प्रभाव नगण्य होने के कारण वह लोक परम सुखी है।