Bhagavad Gita Chapter 14 Verse 10 भगवद् गीता अध्याय 14 श्लोक 10 रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत। रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा।।14.10।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 14.10) ।।14.10।।हे भरतवंशोद्भव अर्जुन रजोगुण और तमोगुणको दबाकर सत्त्वगुण? सत्त्वगुण और तमोगुणको दबाकर रजोगुण? वैसे ही सत्त्वगुण और रजोगुणको दबाकर तमोगुण बढ़ता है। हिंदी टीका - स्वामी रामसुख दास जी ।।14.10।। व्याख्या --   रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत -- रजोगुणकी और तमोगुणकी वृत्तियोंको दबाकर सत्त्वगुण बढ़ता है अर्थात् रजोगुणकी लोभ? प्रवृत्ति? नयेनये कर्मोंका आरम्भ? अशान्ति? स्पृहा? सांसारिक भोग और संग्रहमें प्रियता आदि वृत्तियाँ और तमोगुणकी प्रमाद? आलस्य? अनावश्यक निद्रा? मूढ़ता आदि वृत्तियाँ -- इन सबको सत्त्वगुण दबा देता है और अन्तःकरणमें स्वच्छता? निर्मलता? वैराग्य? निःस्पृहता? उदारता? निवृत्ति आदि वृत्तियोंको उत्पन्न कर देता है।रजः सत्त्वं तमश्चैव -- सत्त्वगुणकी और तमोगुणकी वृत्तियोंको दबाकर रजोगुण बढ़ता है अर्थात् सत्त्वगुणकी ज्ञान? प्रकाश? वैराग्य? उदारता आदि वृत्तियाँ और तमोगुणकी प्रमाद? आलस्य? अनावश्यक? निद्रा? मूढ़ता आदि वृत्तियाँ -- इन सबको रजोगुण दबा देता है और अन्तःकरणमें लोभ? प्रवृत्ति? आरम्भ? अशान्ति? स्पृहा आदि वृत्तियोंको उत्पन्न कर देता है।तमः सत्त्वं रजस्तथा -- वैसे ही सत्त्वगुण और रजोगुणको दबाकर तमोगुण बढ़ता है अर्थात् सत्त्वगुणकी स्वच्छता? निर्मलता? प्रकाश? उदारता आदि वृत्तियाँ और रजोगुणकी चञ्चलता? अशान्ति? लोभ आदि वृत्तियाँ -- इन सबको तमोगुण दबा देता है और अन्तःकरणमें प्रमाद? आलस्य? अतिनिद्रा? मूढ़ता आदि वृत्तियोंको उत्पन्न कर देता है।दो गुणोंको दबाकर एक गुण बढ़ता है? बढ़ा हुआ गुण मनुष्यपर विजय करता है और विजय करके मनुष्यको बाँध देता है। परन्तु भगवान्ने यहाँ (छठेसे दसवें श्लोकतक) उलटा क्रम दिया है अर्थात् पहले बाँधनेकी बात कही? फिर विजय करना कहा और फिर दो गुणोंको दबाकर एकका बढ़ना कहा। ऐसे क्रम देनेका तात्पर्य है -- पहले भगवान्ने दूसरे श्लोकमें बताया कि जिन महापुरुषोंका प्रकृतिसे सम्बन्धविच्छेद हो चुका है? वे महासर्गमें भी उत्पन्न नहीं होते और महाप्रलयमें भी व्यथित नहीं होते। कारण कि महासर्ग और महाप्रलय दोनों प्रकृतिके सम्बन्धसे ही होते हैं। परन्तु जो मनुष्य प्रकृतिके साथ सम्बन्ध जो़ड़ लेते हैं? उनको प्रकृतिजन्य गुण बाँध देते हैं (14। 5)। इसपर स्वाभाविक ही यह प्रश्न होता है कि उन गुणोंका स्वरूप क्या है और वे मनुष्यको किस प्रकार बाँध देते हैं इसके उत्तरमें भगवान्ने छठेसे आठवें श्लोकतक क्रमशः सत्त्व? रज और तम -- तीनों गुणोंका स्वरूप और उनके द्वारा जीवको बाँधे जानेका प्रकार बताया। इसपर प्रश्न होता है कि बाँधनेसे पहले तीनों गुण क्या करते हैं इसके उत्तरमें भगवान्ने बताया कि बाँधनेसे पहले बढ़ा हुआ गुण मनुष्यपर विजय करता है? तब उसको बाँधता है (14। 9)। अब प्रश्न होता है कि गुण मनुष्यपर विजय कैसे करता है इसके उत्तरमें भगवान्ने कहा कि दो गुणोंको दबाकर एक गुण मनुष्यपर विजय करता है (14। 10)। इस प्रकार विचार करनेसे मालूम होता है कि भगवान्ने छठेसे दसवें श्लोकतक जो क्रम रखा है? वह ठीक ही है। सम्बन्ध --   जब दोगुणोंको दबाकर एक गुण बढ़ता है? तब उस बढ़े हुए गुणके क्या लक्षण होते हैं -- इसको बतानेके लिये पहले बढ़े हुए सत्त्वगुणके लक्षणोंका वर्णन करते हैं।