Bhagavad Gita Chapter 13 Verse 5 भगवद् गीता अध्याय 13 श्लोक 5 ऋषिभिर्बहुधा गीतं छन्दोभिर्विविधैः पृथक्। ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव हेतुमद्भिर्विनिश्िचतैः।।13.5।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 13.5) ।।13.5।।(यह क्षेत्रक्षेत्रज्ञका तत्त्व) ऋषियोंके द्वारा बहुत विस्तारसे कहा गया है तथा वेदोंकी ऋचाओंद्वारा बहुत प्रकारसे कहा गया है और युक्तियुक्त एवं निश्चित किये हुए ब्रह्मसूत्रके पदोंद्वारा भी कहा गया है। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।13.5।। (क्षेत्रक्षेत्रज्ञ के विषय में) ऋषियों द्वारा विभिन्न और विविध छन्दों में बहुत प्रकार से गाया गया है? तथा सम्यक् प्रकार से निश्चित किये हुये युक्तियुक्त ब्रह्मसूत्र के पदों द्वारा (अर्थात् ब्रह्म के सूचक शब्दों द्वारा) भी (वैसे ही कहा गया है)।।