Bhagavad Gita Chapter 13 Verse 31 भगवद् गीता अध्याय 13 श्लोक 31 यदा भूतपृथग्भावमेकस्थमनुपश्यति। तत एव च विस्तारं ब्रह्म सम्पद्यते तदा।।13.31।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 13.31) ।।13.31।।जिस कालमें साधक प्राणियोंके अलगअलग भावोंको एक प्रकृतिमें ही स्थित देखता है और उस प्रकृतिसे ही उन सबका विस्तार देखता है? उस कालमें वह ब्रह्मको प्राप्त हो जाता है। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।13.31।। यह पुरुष जब भूतों के पृथक् भावों को एक (परमात्मा) में स्थित देखता है तथा उस (परमात्मा) से ही यह विस्तार हुआ जानता है? तब वह ब्रह्म को प्राप्त होता है।।