Bhagavad Gita Chapter 13 Verse 15 भगवद् गीता अध्याय 13 श्लोक 15 सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम्। असक्तं सर्वभृच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च।।13.15।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 13.15) ।।13.15।।वे (परमात्मा) सम्पूर्ण इन्द्रियोंसे रहित हैं और सम्पूर्ण इन्द्रियोंके विषयोंको प्रकाशित करनेवाले हैं आसक्तिरहित हैं और सम्पूर्ण संसारका भरणपोषण करनेवाले हैं तथा गुणोंसे रहित हैं और सम्पूर्ण गुणोंके भोक्ता हैं। हिंदी टीका - स्वामी रामसुख दास जी ।।13.15।। व्याख्या --   सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम् -- पहले परमात्मा हैं? फिर परमात्माकी शक्ति प्रकृति है। प्रकृतिका कार्य महत्तत्त्व? महत्तत्त्वका कार्य अहंकार? अहंकारका कार्य पञ्चमहाभूत? पञ्चमहाभूतोंका कार्य मन एवं दस इन्द्रियाँ और दस इन्द्रियोंका कार्य पाँच विषय -- ये सभी प्रकृतिके कार्य हैं। परमात्मा प्रकृति और उसके कार्यसे अतीत हैं। वे चाहे सगुण हों या निर्गुण? साकार हों या निराकार? सदा प्रकृतिसे अतीत ही रहते हैं। वे अवतार लेते हैं? तो भी प्रकृतिसे अतीत ही रहते हैं। अवतारके समय वे प्रकृतिको अपने वशमें करके प्रकट होते हैं।जो अपनेको गुणोंमें लिप्त? गुणोंसे बँधा हुआ मानकर जन्मतामरता था? वह बद्ध जीव भी जब परमात्माको प्राप्त होनेपर गुणातीत (गुणोंसे रहित) कहा जाता है? तो फिर परमात्मा गुणोंमें बद्ध कैसे हो सकते हैं वे तो सदा ही गुणोंसे अतीत (रहित) हैं। अतः वे प्राकृत इन्द्रियोंसे रहित हैं अर्थात् संसारी जीवोंकी तरह हाथ? पैर? नेत्र? सिर? मुख? कान आदि इन्द्रियोंसे युक्त नहीं हैं किन्तु उनउन इन्द्रियोंके विषयोंको ग्रहण करनेमें सर्वथा समर्थ है (टिप्पणी प0 689)। जैसे -- वे कानोंसे रहित होनेपर भी भक्तोंकी पुकार सुन लेते हैं? त्वचासे रहित होनेपर भी भक्तोंका आलिङ्गन करते हैं? नेत्रोंसे रहित होनेपर भी प्राणिमात्रको निरन्तर देखते रहते हैं? रसनासे रहित होनेपर भी भक्तोंके द्वारा लगाये हुए भोगका आस्वादन करते हैं? आदिआदि। इस तरह ज्ञानेन्द्रियोंसे रहित होनेपर भी परमात्मा शब्द? स्पर्श आदि विषयोंको ग्रहण करते हैं। ऐसे ही वे वाणीसे रहित होनेपर भी अपने प्यारे भक्तोंसे बातें करते हैं? चरणोंसे रहित होनेपर भी भक्तके पुकारनेपर दौड़कर चले आते हैं? हाथोंसे रहित होनेपर भी भक्तके दिये हुए उपहारको ग्रहण करते हैं? आदिआदि। इस तरह कर्मेन्द्रियोंसे रहित होनेपर भी परमात्मा कर्मेन्द्रियोंका सब कार्य करते हैं। यही इन्द्रियोंसे रहित होनेपर भी भगवान्का इन्द्रियोंके विषयोंको प्रकाशित करना है।असक्तं सर्वभृच्चैव -- भगवान्का सभी प्राणियोंमें अपनापन? प्रेम है? पर किसी भी प्राणीमें आसक्ति नहीं है। आसक्ति न होनेपर भी वे ब्रह्मासे चींटीपर्यन्त सम्पूर्ण प्राणियोंका पालनपोषण करते हैं। जैसे मातापिता अपने बालकका पालनपोषण करते हैं? उससे कई गुना अधिक पालनपोषण भगवान् प्राणियोंका करते हैं। कौन प्राणी कहाँ है और किस प्राणीको कब किसी वस्तु आदिकी जरूरत पड़ती है? इसको पूरी तरह जानते हुए भगवान् उस वस्तुको आवश्यकतानुसार यथोचित रीतिसे पहुँचा देते हैं। प्राणी पृथ्वीपर हो? समुद्रमें हो? आकाशमें हो अथवा स्वर्गमें हो अर्थात् त्रिलोकीमें कहीं भी कोई छोटासेछोटा अथवा बड़ासेबड़ा प्राणी हो? उसका पालनपोषण भगवान् करते हैं। प्राणिमात्रके सुहृद् होनेसे वे अनुकूलप्रतिकूल परिस्थितियोंके द्वारा पापपुण्योंका नाश करके प्राणिमात्रको शुद्ध? पवित्र करते रहते हैं।निर्गुणं गुणभोक्तृ च -- वे परमात्मा सम्पूर्ण गुणोंसे रहित होनेपर भी सम्पूर्ण गुणोंके भोक्त हैं। तात्पर्य है कि जैसे मातापिता बालककी मात्र क्रियाओंको देखकर प्रसन्न होते हैं? ऐसे ही परमात्मा भक्तके द्वारा की हुई मात्र क्रियाओंको देखकर प्रसन्न होते हैं? अर्थात् भक्तलोग जो भी क्रियाएँ करते हैं? उन सब क्रियाओंके भोक्ता भगवान् ही बनते हैं।