Bhagavad Gita Chapter 12 Verse 3 भगवद् गीता अध्याय 12 श्लोक 3 ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते। सर्वत्रगमचिन्त्यं च कूटस्थमचलं ध्रुवम्।।12.3।। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।12.3।। परन्तु जो भक्त अक्षर? अनिर्देश्य? अव्यक्त? सर्वगत? अचिन्त्य? कूटस्थ? अचल और ध्रुव की उपासना करते हैं।। हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी ।।12.3।। See Commentary under 12.4