Bhagavad Gita Chapter 12 Verse 17 भगवद् गीता अध्याय 12 श्लोक 17 यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति। शुभाशुभपरित्यागी भक्ितमान्यः स मे प्रियः।।12.17।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 12.17) ।।12.17।।जो न कभी हर्षित होता है? न द्वेष करता है? न शोक करता है? न कामना करता है और जो शुभअशुभ कर्मोंमें रागद्वेषका त्यागी है? वह भक्तिमान् मनुष्य मुझे प्रिय है। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।12.17।। जो न हर्षित होता है और न द्वेष करता है न शोक करता है और न आकांक्षा तथा जो शुभ और अशुभ को त्याग देता है? वह भक्तिमान् पुरुष मुझे प्रिय है।।