Bhagavad Gita Chapter 11 Verse 52 भगवद् गीता अध्याय 11 श्लोक 52 श्री भगवानुवाच सुदुर्दर्शमिदं रूपं दृष्टवानसि यन्मम। देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्क्षिणः।।11.52।। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।11.52।। श्रीभगवान् ने कहा -- मेरा यह रूप देखने को मिलना अति दुर्लभ है? जिसको कि तुमने देखा है। देवतागण भी सदा इस रूप के दर्शन के इच्छुक रहते हैं।। हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी ।।11.52।। See Commentary under 11.53.