Bhagavad Gita Chapter 11 Verse 35 भगवद् गीता अध्याय 11 श्लोक 35 सञ्जय उवाच एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य कृताञ्जलिर्वेपमानः किरीटी। नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णं सगद्गदं भीतभीतः प्रणम्य।।11.35।। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।11.35।। संजय ने कहा -- केशव भगवान् के इस वचन को सुनकर मुकुटधारी अर्जुन हाथ जोड़े हुए? कांपता हुआ नमस्कार करके पुन भयभीत हुआ श्रीकृष्ण के प्रति गद्गद् वाणी से बोला।। हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी ।।11.35।। नाटककार के रूप में व्यासजी अपनी सहज स्वाभाविक कलाकुशलता से दृश्य को युद्धभूमि से शान्त और मौन राजप्रासाद में ले जाते हैं? जहाँ संजय अन्ध धृतराष्ट्र को युद्धभूमि का वृतान्त सुना रहा था। इसी अध्याय में तीन बार पाठक को कुरुक्षेत्र के भयोत्पादक वातावरण से दूर ले जाकर? व्यासजी न केवल इन दृश्यों की प्रभावी गति को बढ़ाते हैं? वरन् पाठकों के मन को आवश्यक विश्राम भी देते हैं? जो निरन्तर भयंकर सौन्दर्य के सूक्ष्म विषय में तनाव अनुभव करने लगता है।यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि गीता में संजय हमारा विशेष संवाददाता है जिसे पाण्डवों के न्यायपक्ष से पूर्ण सहानुभूति है। स्वाभाविक ही है कि जैसे ही वह भगवान् के शब्दों द्वारा भीष्म द्रोणादि के नाश का वृतान्त सुनाता है? वैसे ही वह उस अन्ध? वृद्ध व्यक्ति को आसन्न घोर विध्वंस के प्रति जागरूक कराना चाहता है। जैसा कि हम पहले भी देख चुके हैं कि केवल धृतराष्ट्र ही इस समय भी युद्ध को रोक सकता था? और संजय यह देखने को अत्यन्त उत्सुक है कि किसी प्रकार यह युद्ध रुक जाये। इस प्रकार? इस श्लोक में प्रयुक्त भाषा से ही संजय का मन्तव्य स्पष्ट हो जाता है।अकस्मात् यहाँ संजय अर्जुन को किरीटी अर्थात् मुकुटधारी कहता है। सम्भवत यह एक साहसपूर्ण भविष्यवाणी है? जिसके द्वारा संजय यह अपेक्षा करता है कि धृतराष्ट्र इस विनाशकारी युद्ध की निरर्थकता देखे। परन्तु एक अन्ध पुरुष कदापि देख नहीं सकता? और यदि उसकी बुद्धि पर भी मोह का आवरण पड़ा हो? तो देखने का प्रश्न ही नहीं उठता है।अत्यधिक पुत्रासक्ति के कारण यदि राजा धृतराष्ट्र की सद्बुद्धि को नहीं जगाया जा सकता है? तो संजय एक मनोवैज्ञानिक उपचार का प्रयोग करके देखना चाहता है। यदि इस बात का विस्तृत वर्णन किया जाये कि किसी दृश्य को देखकर सब लोग किस प्रकार भय से कांप रहे हैं? तो निश्चित ही सामान्यत साहसी पुरुषों के मन में भी आतंक फैल जाता है। यदि कृष्ण का घनिष्ठ मित्र अर्जुन भी भय़ से कांपता हुआ गद्गद् वाणी में भगवान् से कहता है? तो इस वर्णन से संजय यह अपेक्षा करता है कि कोई भी विवेकी पुरुष आसन्न युद्ध की भयानकता को तथा पराजित पक्ष के लोगों को प्राप्त होने वाले भयंकर परिणामों को भी पहचान सकेगा। परन्तु संजय के इन शब्दों का भी धृतराष्ट्र के मन पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा? जो अपने पुत्रों के प्रति मूढ़ प्रेम के अतिरिक्त अन्य सब के प्रति पूर्ण अन्ध हो गया था।अर्जुन विश्वरूप भगवान् को सम्बोधित करके कहता है।