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Bhagavad Gita Chapter 11 Verse 32

भगवद् गीता अध्याय 11 श्लोक 32

श्री भगवानुवाच
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो
लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे
येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।।11.32।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 11.32)

।।11.32।।श्रीभगवान् बोले -- मैं सम्पूर्ण लोकोंका क्षय करनेवाला बढ़ा हुआ काल हूँ और इस समय मैं इन सब लोगोंका संहार करनेके लिये यहाँ आया हूँ। तुम्हारे प्रतिपक्षमें जो योद्धालोग खड़े हैं? वे सब तुम्हारे युद्ध किये बिना भी नहीं रहेंगे।

हिंदी टीका - स्वामी रामसुख दास जी

।।11.32।। व्याख्या --  [भगवान्का विश्वरूप विचार करनेपर बहुत विलक्षण मालूम देता है क्योंकि उसको देखनेमें अर्जुनकी दिव्यदृष्टि भी पूरी तरहसे काम नहीं कर रही है और वे विश्वरूपको कठिनतासे देखे जानेयोग्य बताते हैं -- दुर्निरीक्ष्यं समन्तात् (11। 17)। यहाँ भी वे भगवान्से पूछ बैठते हैं कि उग्र रूपवाले आप कौन हैं ऐसा मालूम देता है कि अगर अर्जुन भयभीत होकर ऐसा नहीं पूछते तो भगवान् और भी अधिक विलक्षणरूपसे प्रकट होते चले जाते। परन्तु अर्जुनके बीचमें ही पूछनेसे भगवान्ने और आगेका रूप दिखाना बन्द कर दिया और अर्जुनके प्रश्नका उत्तर देने लगे।]कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धः -- पूर्वश्लोकमें अर्जुनने पूछा था कि उग्ररूपवाले आप कौन हैं --,आख्याहि मे को भवानुग्ररूपः उसके उत्तरमें विराट्रूप भगवान् कहते हैं कि मैं सम्पूर्ण लोकोंका क्षय (नाश) करनेवाला बड़े भयंकर रूपसे बढ़ा हुआ अक्षय काल हूँ।लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः -- अर्जुने पूछा था कि मैं आपकी प्रवृत्तिको नहीं जान रहा हूँ -- न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम् अर्थात् आप यहाँ क्या करने आये हैं उसके उत्तरमें भगवान् कहते हैं कि मैं इस समय दोनों सेनाओंका संहार करनेके लिये ही यहाँ आया हूँ।ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः -- तुमने पहले यह कहा था कि मैं युद्ध नहीं करूँगा -- न योत्स्ये (2। 9)? तो क्या तुम्हारे युद्ध किये बिना ये प्रतिपक्षी नहीं मरेंगे अर्थात् तुम्हारे युद्ध करने और न करनेसे कोई फरक नहीं पड़ेगा। कारण कि मैं सबका संहार करनेके लिये प्रवृत्त हुआ हूँ। यह बात तुमने विराट्रूपमें भी देख ली है कि तुम्हारे पक्षकी और विपक्षकी दोनों सेनाएँ मेरे भयंकर मुखोंमें प्रविष्ट हो रही हैं।यहाँ एक शङ्का होती है कि अर्जुनने अपनी और कौरवपक्षकी सेनाके सभी लोगोंको भगवान्के मुखोंमें जाकर नष्ट होते हुए देखा था? तो फिर भगवान्ने यहाँ केवल प्रतिपक्षकी ही बात क्यों कही कि तुम्हारे युद्ध,किये बिना भी ये प्रतिपक्षी नहीं रहेंगे इसका समाधान है कि अगर अर्जुन युद्ध करते तो केवल प्रतिपक्षियोंको ही मारते और युद्ध नहीं करते तो प्रतिपक्षियोंको नहीं मारते। अतः भगवान् कहते हैं कि तुम्हारे मारे बिना भी ये प्रतिपक्षी नहीं बचेंगे क्योंकि मैं कालरूपसे सबको खा जाऊँगा। तात्पर्य यह है कि इन सबका संहार तो होनेवाला ही है? तुम केवल अपने युद्धरूप कर्तव्यका पालन करो।एक शङ्का यह भी होती है कि यहाँ भगवान् अर्जुनसे कहते हैं कि प्रतिपक्षके योद्धालोग तुम्हारे युद्ध किये बिना भी नहीं रहेंगे? फिर इस युद्धमें प्रतिपक्षके अश्वत्थामा आदि योद्धा कैसे बच गये इसका समाधान है कि यहाँ भगवान्ने उन्हीं योद्धाओंके मरनेकी बात कही है? जिसको अर्जुन मार सकते हैं और जिनको अर्जुन आगे मारेंगे। अतः भगवान्के कथनका तात्पर्य है कि जिन योद्धाओंको तुम मार सकते हो? वे सभी तुम्हारे मारे बिना ही मर जायँगे। जिनको तुम आगे मारोगे? वे मेरे द्वारा पहलेसे ही मारे हुए हैं -- मयैवैते निहताः पूर्वमेव (11। 33)। सम्बन्ध --   पूर्वश्लोकमें भगवान्ने कहा था कि तुम्हारे मारे बिना भी ये प्रतिपक्षी योद्धा नहीं रहेंगे। ऐसी स्थितिमें अर्जुनको क्या करना चाहिये -- इसका उत्तर भगवान् आगेके दो श्लोकोंमें देते हैं।