Bhagavad Gita Chapter 11 Verse 11 भगवद् गीता अध्याय 11 श्लोक 11 दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्। सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम्।।11.11।। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।11.11।। दिव्य माला और वस्त्रों को धारण किये हुये और दिव्य गन्ध का लेपन किये हुये एवं समस्त प्रकार के आश्चर्यों से युक्त अनन्त? विश्वतोमुख (विराट् स्वरूप) परम देव (को अर्जुन ने देखा)।। हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी ।।11.11।। जब कोई चित्रकार अपने कलात्मक विचार को रंगों के माध्यम से व्यक्त करने का प्रयत्न करता है? तो वह प्रारम्भ में एक पट्ट पर अपने विषयवस्तु की अस्पष्ट रूपरेखा खींचता है। तत्पश्चात्? एकएक इंच में वह रंगों को भर कर चित्र को और अधिक स्पष्ट करता जाता है। अन्त में वह चित्र उस चित्रकार के सन्देश का गीत गाते हुये प्रतीत होता है। इसी प्रकार? साहित्य के कुशल चित्रकार व्यासजी के द्वारा चित्रित इस शब्दचित्र का यह श्लोक संजय के शब्दों में भगवान् के विश्वरूप की रूपरेखा खींचता है।संजय के समक्ष जो दृश्य प्रस्तुत हुआ है? वह सामान्य बुद्धि के पुरुष के द्वारा सरलता से ग्रहण करने योग्य कदापि नहीं कहा जा सकता। इस वैभवपूर्ण एवं शक्तिशाली दृश्य को देखकर सामान्य पुरुष तो भय और विस्मय से भौचक्का ही रह जायेगा। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड कोई मन के द्वारा कल्पना किया जाने योग्य विषय नहीं है और न ही बुद्धि उसको ग्रहण कर सकती है। इसलिए? जब गीतोपदेश के मध्य यह दृश्य उपस्थित हो जाता है? तब संजय भी वर्णन करते हुए कुछ हकलाने लगता है।दिव्य माला और वस्त्रों को धारण किये हुए? दिव्य गन्ध का लेपन किये हुए? सर्वाश्चर्यमय? विश्वतोमुख भगवान् इत्यादि शब्द चित्रकार के उन वक्र चिह्नों के प्रतीक हैं जिनके लगाने पर विराट् रूप का चित्र उसकी रूपरेखा में पूर्ण होता है।संजय आगे वर्णन करता है